Ipc sections list in hindi
police dara list hindi |
भारतीय
, 1860
घारा 1. इस सांहिता का नाम व विस्तार- यह अधिनियम भारतीय दण्ड संहिता कहलाएगा। यह जम्मू कश्मीर को छोड़कर पूरे भारतवर्ष में लागू होगा क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 370 के अनुसार जम्मू कश्मीर को एक विशेष राज्य का दर्जा दिया गया है। इसलिए यह संहिता वहां लागू नहीं है। वहां पर राजा रणवीर सिंह पैनल कोड के नाम से संहिता लागू है।
यह
संहिता 1860 में बनी।
यह
संहिता 01.01.1862 को लागू हुई।
इसके जन्मदाता लार्ड मैकाले थे।
संविधान
के अनुच्छेद 370 के अनुसार विशेष
दर्जा प्राप् राज्य जम्मू-कश्मीर है।
जम्मू-कश्मीर में राजा रणबीर सिंह पैनल कोड लागू है।
धारा 2. भारत
में
किए
गए
अपराधों
का
दण्ड- इस
धारा के अधीन आई.पी.सी. के
अनुसार हर व्यक्ति को
भारत में किए गए अपराधों का
दण्ड दिया जा सकता है।
जो इसके अधीन दण्ड का भागी होगा,
किसी भी धर्म, जाति,
मूलवंश किसी देश का हो। भारत
मे रहकर किसी जगह अपराध करेगा तो वह दण्ड
का भागी होगा।
विधान
के अनुसार कुछ व्यक्तियों को छूट भी
प्राप्त है।
राष्ट्रपति
को संविधान के अनुच्छेद 361 के
अनुसार
गवर्नर
को संविधान के अनुच्छेद 361 के
अनुसार
दूसरे
देश का बादशाह
दूसरे
देश का राजदूत
दूसरे
देश की फौज, दुश्मन
लड़ाई
के जहाज
धारा 17. सरकार
- सरकार से अभिप्रायः केन्द्रीय
या राज्य सरकार से है, इसका
अर्थ है कि सरकार
शब्द से हमे पता
लगता है कि वह
व्यवस्था जो संवैधानिक है
और जनता की भलाई के
लिए, संवैधानिक मूल्यों की प्राप्ति के
लिए कार्य करती है।
राज्य
सरकार को भी ‘सरकार
शब्द भारतीय दण्ड संहिता, 1860 के अनुसार परिभाषित
किया गया है।
धारा 21. लोक
सेवक-यह शब्द उस
व्यक्ति का घोतक है
जो इसके पश्चात् निम्नगत वर्णनों में से किसी मे
आता है –
1. जल,
थल, वायु सेवाओं का कमीशण्ड आफिसर
2 प्रत्येक
जज
3. न्यायालय
का हर ऐसा व्यक्ति
जिसको कोई कानूनी मामला न्यायाधीश द्वारा रिपोर्ट तैयार तसदीक सम्पत्ति कब्जे में लेना या वितरण करना,
समन, वारण्ट तामिल कराना आदि दिया गया।
4. हर
ऐसा व्यक्ति जो न्यायालय या
लोक सेवक की सहायता करता
है।
5. हर
ऐसा व्यक्ति जो न्यायालय या
लोक समक्ष अधिकारी द्वारा रिपोर्ट देने व कर वसूलने
के लिए नियुक्त किया गया हो।
6 प्रत्येक
ऐसा व्यक्ति जो कत्तव्य्शील हो,
अपराधों की रोकथाम करें,
अपराधियों को गिरफतार करे
और दण्ड के लिए न्यायालय
मे पेश करें।
7. हर
ऐसा व्यक्ति जो अपने अधीन
किसी को कैद करने
का अधिकार रखता हो।
8. हर
ऐसा अफसर जिसका कत्तव्य्य है कि सरकार
की ओर से किसी
सम्पत्ति को प्राप्त करें
खर्च करे धन सम्बन्धी हितों
की सुरक्षा के लिए कानूनी
उल्लंघना रोके।
9. हर
ऐसा व्यक्ति, अफसर जो गावं, नगर,
जिले को कोई माल
अपने कब्जे में ले. रखे, सर्वेक्षण करे या टैंक्स वसूल
करें या कोई दस्तावेज
बनाए।
10. हर
ऐसा व्यक्ति जो चुनाव सम्बन्धी
मामले की
11. प्रत्येक
व्यक्ति जो सरकार की
सेवा में हो या सरकार
द्वारा लोक कर्त्तव्य का पालन करने
में कोई कमीशन या फीस लेता
है जैसे : लोक सेवक, मुख्यमंत्री राज्य के मंत्री, श्रमायूक्त,
न्यायालय का तामिलीवाहक सरकारी
कार्यालय का लिपिक, चिकित्सा
अधिकारी, पटवारी, जेलर आदि।
घारा 22. चल
सम्पत्ति
वह
सम्पत्ति
जो
:-
1. कोई
सकल आकार रखती है।
2 पृथ्वी
से जुड़ी हुई ना हो
धारा 23. अनुचित
लाभ-कानून खिलाफ साधनों से सम्पत्ति की
हानि जिसका कानूनी रूप से हकदार हानि
उठाने वाला हो अर्थात यदि
एक व्यक्ति को केाई सम्पत्ति
प्राप्त होती है जिसका कि
वह हकदार नहीं है तो यह
अनुचित लाभ है।
अनुचित हानि
: कानून विरुद्ध साधनों द्वारा ऐसी सम्पत्ति की हानि, जिसका
कानूनी या वैध रूप
से हकदार हानि उठाने वाला व्यक्ति हो। हकदार होते हुए जिसकी हानि होती है वह अनूचित
हानि उठाने वाला है।
धारा 24. बेईमानी
- जो कोई व्यक्ति किसी कार्य को इस नियत
से करे कि उसके कार्य
से एक व्यक्ति को
हानि हो तो कहा
जा जाएगा कि उसने यह
काम कपटपूर्ण किया है । एक
व्यक्ति को सदोष लाभ
कारित करें या अन्य व्यक्ति
को सदोष हानि कारित करे, वह उस कार्य
को बेईमानी’ से करता है,
यह कहा जाता है खुद का
फायदा, किसी अन्य की हानि करना
बेईमानी है।
घारा 25. कपटपूर्ण
(घोखा)-जो कोई किसी
कार्य को इस नियत
से करे कि अन्य को
माल, सम्पत्ति या हक से
दगा देकर वंचित कर दें तो
कहा जाएगा कि उसने यह
काम कपटपूर्ण किया है ।
घारा 26. विश्वास
करने
का
कारण
- जब किसी व्यक्ति के पास विश्वास
करने के लिए पर्याप्त
कारण हो तो कहा
जाएगा कि उस व्यक्ति
के पास उस बात का
विश्वास करने का कारण है
अन्यथा नहीं। उसके पास अपनी बात को सही साबित
करने के लिए पूर्ण
तर्क हो, कि उस पर
विश्वास किया जा सके ।
धारा 27. पत्नी,
लिपिक
या
नौकर
के
कब्जे
में
सम्पत्ति-यदि किसी व्यक्ति की वह सम्पत्ति
जिसका वह हकदार है
यदि उसकी पत्नी, नौकरी या लिपिक के
कब्जे में है तो इस
धारा के अनुसार वह
सम्पत्ति या माल उसी
आदमी के कब्जे में
समझी जाएगी।
धारा 28. कूटकरण
(जाली)-यदि कोई व्यक्ति किसी वस्त को अन्य किसी
वस्तु के समान इस
इरादे से बनाए कि
उसकी समानता से धोखा दिया
जा सकता है या धोखा
दिए जाने की सम्भावना हो
तो कहा जाएगा कि उस व्यक्ति
ने
कूटकरण
किया है।
स्पष्टीकरण : कूटकरण के लिए यह
आवश्यक नहीं है कि नकल
ठीक वैसी हो जबकि कोई
व्यक्ति एक चीज को
दूसरी चीज के समान प्रयोग
करें यह जानते हुए
कि यह धोखा है
या नकली वस्तु है और अन्य
किसी को विश्वास दिलाए
कि यह असल है।
धारा 29. दस्तावेज
- वह विषय वस्तु जो अंको, अक्षरों
चिहनों में लिखी गई है. जिसको
सबूत या साक्ष्य के
रूप में प्रयोग किया जाना हो या किए
जाने की उम्मीद है
दस्तावेज कहलाती है।
दस्तावेज
किसी भी कागज पर
लिखा, पत्थर पर खुदा शिलालेख
या कोई भी चिहनों वाली
वस्तु, जिसे सबूत के तौर पर
प्रस्तुत प्रयोग किया जा सके. दस्तावेज
कहलाता है।
1. मानचित्र
2. रेखांक
उदाहरण : के एक विनिमय
पत्र की पीठ पर,
जो उसके आदेश के अनुसार देय
है, अपना नाम लिख देता है। बाणिज्यिक प्रथा के अनुसार व्याख्या
करने पर इस पृष्ठांकन
का अर्थ हैं कि भारक के
विनिमय पत्र का भुगतान कर
दिया
जाए।
पृष्ठाकन दस्तावेज है और इसका
अर्थ उसी प्रकार से लगाया जाना
चाहिए मानो हस्ताक्षर के ऊपर धारक
को भुगतान करो शब्द या तत्प्रभाव वाले
शब्द लिख दिए गए हो।
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धारा 34. सामान्य
आशय
से
किया
गया
कार्य-
1. अगर
कोई आपराधिक कार्य कई आदमियों ने
मिलकर. सामान्य आशय की पूर्ति के
लिए किया हो,
2. जिसे
करने की नियत उन
सबकी एक हो।
3. तो
उस अपराध की जिम्मेदारी उन
व्यक्तियों मे से प्रत्येक
पर, समान उसी प्रकार लागू होगी, मानो उसने अकेले ने ही किया
हो।
4. योजनाबद्ध
अपराध हो।
स्पष्टीकरण : यदि राम, तरूण, अमन, विक्रम. दिनेश मिलकर किसी को सलाह करके
एक नियत व उददेश्य से
चोट मारे तो कहा जाएगा
कार्य सामान्य आशय से किया गया
है।
घारा 39. स्वेच्छा
1. स्वेच्छा
या इरादे से कोई व्यक्ति
2. उन
उपायों द्वारा किसी कार्य को करें, जो
उसकी नियत में हो
3. उन
उपायों जिनको काम में लाने के समय वह
जानता हो
4. कि
उस कार्य का क्या नतीजा
हो सकता है।
5. उस
व्यक्ति के उस नतीजे
को इरादे से पैदा हो
जाएगा
स्पष्टीकरण : अमन लूट के इरादे को
जानते हुए, उददेश्य या कार्य को
पूरा करने के लिए किसी
घर में आग लगाता है
और इस प्रकार एक
व्यक्ति की मृत्यु कारित
कर देता है। उसका आशय भले ही मृत्यु कारित
करने का न रहा
हो और वह दुखित
भी हो, कि उसके कार्य
से मृत्यु कारित हुई है तो भी
यदि वह जानता है
कि वह मृत्यु कारित
कर दे तो उसने
स्वेच्छा मृत्यु कारित की है।
धारा 40. अपराध
- भारतीय दण्ड संहिता के अनुसार जो
कार्य दण्डनीय है वह अपराध
कहलाता है। भारतीय दण्ड संहिता में जिन कार्या को कानून या
विधि विरुद्ध बताया गया है तो वह
अपराध है। विशेष या स्थानीय कानन
में दण्डनीय हो।
स्पष्टीकरण : कूटकरण के लिए यह
आवश्यक नहीं है कि नकल
ठीक वैसी हो जबकि कोई
व्यक्ति एक चीज़ को
दूसरी चीज के समान प्रयोग
करें यह जानते हुए
कि यह धोखा है
या नकली वस्तु है और अन्य
किसी को विश्वास दिलाए
कि यह असल है।
घारा 43. अवैघ
(1) अवैध
उस कार्य को कहते हैं
जो अपराध हो।
2) कानून
द्वारा मना किया गया हो।
(3) जिससे
कोई दीवानी कार्यवाही हो सके।।
(4) कानून
जिस कार्य को करने के
लिए किसी व्यक्ति को बाध्य करता
है वह उसका लोप
करता है तो यह
कार्य अवैध माना जाएगा।
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घारा 44. क्षति-
(1) इस
शब्द से हर तरह
के नुकसान से माना जाएगा।
2) यह
व्यक्ति के शरीर
(3) व्यक्ति
के मन
(4) मान-सम्मान
5) या
सम्पति को अवैध रूप
से पहुँचाई जाए तो यह क्षति
है।
अर्थात्
जिसका व्यक्ति हकदार है, उस वस्तु या
मान-सम्मान, सम्पति का नुकसान ही
क्षति है।
घारा 52. सदभावनापूर्वक-
(1) कोई
बात सदभावनापूर्वक की गई है।
2) या विश्वास की
गई कही जाती है।
(3) जो
बात सर्तकता और
4) ध्यान
के बिना की गई
(5) या
विश्वास की गई हो.
जब
कोई यह जानते हुए
विश्वास करता है कि यह
कार्य भलाई का है, भरोसा
किया गया तो कहा जाता
है कि सदभावनापूर्वक है।
धारा 52-ए.
आश्रय
देना
(शरण)
(1) धारा
157 भारतीय दण्ड संहिता व धारा 130 भारतीय
दण्ड संहिता के अतिरिक्त कहीं
शरण देना शब्द प्रयोग हुआ तो यही समझा
जाएगा कि
(2) व्यक्ति
की पत्नी ने या पति
ने पत्नी को शरण के
रूप में
(3) भोजन,
पानी, पैसे, कपडे, हथियार, युद्ध सामग्री
(4) या
सवारी का साधन प्रदान
किया या
(5) इस
धारा में बताई या नहीं बताई
बातें अन्य प्रकार से वाक्य छल
द्वारा सहायता की गई हो।
(6) जिससे
वह पकडे जाने से बच सके।
यदि
कोई व्यक्ति अपराधी भी है, पत्नी
द्वारा आश्रय देना, अवैध नहीं माना जाता। कानूनन वह बचाव के
लिए पति की सहायता कर
सकती है।
धारा 76. कानून
द्वारा
बाध्य
होते
हुए
व्यक्ति
द्वारा
किया
गया
कार्य
- कोई कार्य अपराध नहीं है, जो कोई व्यक्ति
कानून (विधि) द्वारा बाध्य होते हुए करता है। जिसमें तथ्य की भूल हो
जाती है न कि
विधि की भूल के
कारण। सदभावनापूर्वक विश्वास करता हो कि वह
उसे करने के लिए कानूनन
बाध्य हैं।
उदाहरण :- अपने वरिष्ठ आफिसर के आदेश से
एक सैनिक क भीड़ पर
गोली चलाता है। ‘क ने कोई
अपराध नहीं किया।
धारा 77. न्यायिक
फैसला
करते
हुए
न्यायाधीश
का
कार्य-
कोई बात अपराध नहीं है. जब न्यायिक फैसला
करते हुए न्यायाधीश द्वारा ऐसी शक्ति प्रयोग में लाई जाती है और उसे
सदभावपूर्वक विश्वास है कि ये
शक्ति उसे विधि द्वारा दी गई है।
घारा 78, अदालत
के
आदेश
से
किया
गया
कार्य-
किसी व्यक्ति का ऐसा कोई
कार्य अपराध नहीं है जो उसने
अदालत के आदेशानुसार किया
हो, चाहे उस न्यायालय को
ऐसा निर्णय देने की अधिकारिता न
रही हो।
धारा 79. विधि
द्वारा
न्यायानुमत
या
कानून
अधिकारी
द्वारा
किया
गया
कार्य
:- वह कार्य अपराध नहीं है जो किसी
ऐसे व्यक्ति द्वारा किया गया हो जो उस
कार्य को करने का
कानूनी अधिकारी हो या तथ्य
कि भूल के कारण, ने
कि विधि की भूल के
कारण, सदृभावनापूर्वक विश्वास करता हो कि वह
उसे करने के लिए विधि
द्वारा न्यायानुमत है।
घारा 80. विधिपूर्ण
कार्य
करने
में
दुर्घटना
-कोई बात अपराध नहीं है, जो दुर्घटना या
दुर्भाग्य से और किसी
आपराधिक आश्य या ज्ञान के
बिना विधिपुर्ण प्रकार से विधिपूर्ण साधनों
द्वारा और सायधानी के
साथ विधिपूर्ण कार्य करने में हो जाती है।
उदाहरण :- ‘क कुल्हाडी से
काम कर रहा है,
कल्हाडी का फल उसमें
से निकल कर निकट खडे
हुए व्यक्ति को” लग जाता है।
जिससे उसकी मृत्यु हो जाती है।
यहाँ क का कार्य
अपराध नहीं है ।
घारा 81. कार्य
जिससे
हानि
कारित
होना
सम्माव्य
है,
किन्तु
जो
आपराधिक
आश्य
के
बिना
और
अन्य
अपहानि
के
निवारण
के
लिए
किया
गया
है
-वह कार्य अपराध नहीं है जिसमें हानि
होना सभव है। ज्यादा हानि को बचाने के
लिए कम हानि की
गई हो।
उदाहरण :- क एक बड़े
अग्निकांड के समय आग
को फैलने से रोकने के
लिए घरो को गिरा देता
है वह इस कार्य
को मानव जीवन या सम्पति को
बचाने के लिए करता
है यहां पर क का
कार्य मारफी योग्य है क उस
अपराध का दोषी नहीं
है।
धारा 82. सात
वर्ष
से
कम
आयु
के
बच्चे
का
कार्य
– कोई कार्य अपराध नहीं है जो सात
वर्ष से कम आयु
के बच्चे के द्वारा किया
जाए क्योंकि वह विकसित बुद्धि
वाला नहीं हो सकता बह
ठीक और गलत का
निर्णय नहीं ले सकता।
धारा 83. सात
वर्ष
से
ऊपर
व
बारह
वर्ष
से
कम
आयु
के
अपरिपक्व
समझ
के
शिशु
का
कार्य
-कोई बात अपराध नहीं है, जो सात वर्ष
से ऊपर और बारह वर्ष
से कम आयु के
ऐसे शिशु द्वारा की जाती है
जिसकी समझ इतनी परिपक्व नहीं हुई है कि वह
उस अवसर पर अपने आचरण
की प्रकृति और परिणामों का
निर्णय कर सकें।
धारा 84. विकृतचित
अथवा
पागल
व्यक्ति
का
कार्य
-कोई बात अपराध नहीं है जो ऐसे
व्यक्ति द्वारा की जाती है,
जो उसे करते समय चित-विकृत के कारण उस
कार्य की प्रकृति या
यह कि जो कुछ
वह कर रहा है
वह दोषपूर्ण या विधि के
प्रतिकूल है, जानने में असमर्थ हैं
धारा 85 नशे
में
किया
गया
कार्य-कोई बात आपराध नहीं है जो ऐसे
व्यक्ति द्वारा की जाती है,
जो उसे करते समय नशे के कारण उस
कार्य के प्रकृति या
यह कि जो कुछ
वह कर रहा है
वह दोषपूर्ण या विधि के
प्रतिकूल है, जानने में असमर्थ है, परन्तु यह तब जबकि
वह चीज जिससे उसकी मतता हुई थी उसको अपने
ज्ञान व इच्छा के
विरूद्ध दी गई थी।
धारा 86. किसी
व्यक्ति
द्वारा,
नशे
में
है,
किया
गया
अपराध
जिसमें
विशेष
आश्य
या
ज्ञान
का
होना
अपेक्षित
है
: -नशे की हालत में
किया गया कार्य उस समय अपराध
नहीं जब नशे में
होते हुए कार्य के परिणाम के
बारे में न जानता हो
अगर कार्य के परिणाम के
बारे में जानता है तो सजा
से मुक्त नहीं किया जाएगा। नुख्य बात यह है कि
नशा उसकी इच्छा व ज्ञान के
बिना दिया होना चाहिये तभी छुट है।
धारा 87. सम्मति
से
किया
गया
कार्य
-जिससे मृत्यु या घोर उपहति
कारित करने का आश्य न
हो और न उसकी
सम्भव्यता का ज्ञान हो
कोई कार्य अपराध नहीं है जिसका आशय
मृत्यु या गम्भीर चोट
पहुँचाना नहीं है। यदि वह व्यक्ति (चोट
खाने वाला) 18 वर्ष से ऊपर हो
और उस दौरान होने
वाली हानि के लिए रजामंदी
दे दी हो।
उदाहरण :- अ और ब
नामक दो व्यक्ति कुश्ती
लड रहे है अगर खेल
में अ ब को
उपहति या क्षति पहचा
दे तो यहां पर
अ का कार्य अपराध
नहीं है।
घारा 88, किसी
व्यक्ति
के
फायदे
के
लिए
सम्मति
से
सद्भावपूर्वक
किया
गया
कार्य
जिससे
मृतयुकारित
करने
का
आश्य
नहीं
है
:- कोई कार्य जो मृतयुकारित करने
के आश्य से न किया
गया हो किसी ऐसी
अपहानि के कारण नहीं
है जो उस बात
से किसी ऐसे व्यक्ति को, जिसके फायदे के लिए वह
बात सदभावनापूर्वक की जाए।
उदाहरण :- जैसे य बिमारी से
पीडित व्यक्ति है और क
नामक डाक्टर उसकी सहमति से मृत्युकारित करने
का आश्य न रखते हुए
उसका आफ्रेशन करता है यदि इस
दौरान य की मृत्यु
हो जाती है तो क
का कार्य अपराध नहीं है।
धारा 89. संरक्षक
द्वारा
या
उसकी
सम्मति
से
शिशु
या
उन्मत
व्यक्ति
(पागल)
के
फायदे
के
लिए
किया
गया
कार्य-जो कोई बात
12 वर्ष से कम आयु
के बच्चे या पागल व्यक्ति
के फायदे के लिए नेक
नियत से उसके संरक्षक
की सहमति से किया जाए
वह कार्य अपराध नहों है।
उदाहरण :- क सदभावनापूर्वक अपने
शिशु के फायदे के
लिए अपने शिशु की सम्मति के
बिना डाक्टर द्वारा पथरी का आप्रेशन करवाता
है क का उदेश्य
शिशु को रोगमुक्त करवाना
है।
घारा 90. सम्मति,
जिसके
संबंध
में
यह
ज्ञात
हो
कि
वह
भय
या
भ्रम
के
अधीन
दी
गई
है:
-
1. यदि
वह सम्भति किसी व्यक्ति ने क्षति, भय
के अधीन या तथ्य के
भ्रम के अधीन दी
हो।
2. यदि
वह सम्मति ऐसे व्यक्ति ने दी हो
जो बारह साल से कम आयु
का है।
3. पागल
व्यक्ति जो किसी बात
को उचित या अनुचित का
विभेद न कर सके।
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