Human skeleton

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खोपड़ी की हड्डियाँ

(Meaning of Skeleton System)-मानवीय शरीर में छोटा, बड़ा, पतली, लंबी, चपटी आकारहीन आदि अनेक तरह की 206 हड्डियाँ होती हैं जो मिलकर एक पिंजर का निर्माण करती हैं। इस पिंजर की भिन्न-भिन्न हड्डियाँ जब मिलकर शरीर के लिए विभिन्न कार्य करती हैं तो हम इनको अस्थिपिंजर या कंकाल संस्थान कहते हैं। यह शरीर के अंदर कोमल अंगों को सुरक्षित रखता है। यह शरीर में लीवर का काम करता है और अस्थियों के साथ माँसपेशियों को जुड़ने के लिए स्थान बनाता है।

हड्डियों/अस्थियों के प्रकार (Types of Bones)-अस्थिपिंजर संस्थान में निम्नलिखित प्रकार की अस्थियाँ होती हैं

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1. खोपड़ी की हड्डियाँ (Bones of Skull)-खोपड़ी की हड्डियों को दो भागों में बाँटा गया है-एक कपाल (Cranium) जिसमें आठ हड्डियाँ होती हैं, दूसरे चेहरे कान की हड्डियाँ जिसमें लगभग 20 हड्डियाँ होती हैं। खोपड़ी के ऊपरी भाग अर्थात् कपाल में दिमाग सुरक्षित होता है।

2. रीढ़ की हड्डी (Backbone)-रीढ़ की हड्डी को कशेरुकदण्ड (Vertebral Column) या मेरुदण्ड भी कहते हैं। रीढ़ की हड्डी को मनुष्य के शरीर का आधार स्तंभ माना जाता है। यह गर्दन से शुरू होकर मलमूत्र के निकास स्थान तक जाती है। रीढ़ की हड्डी ___ बहुत लचकदार होती है जो कई हड्डियों के मिलने से बनती है जिन्हें कशेरुकाएँ (Vertebrae) कहते हैं।

प्रत्येक हड्डी के मध्य एक गुदा (Pad) होता है जिसको फिब्रो कार्टीलेज (Fibro Cartilage) कहते हैं। ये हड्डियों को आपस में रगड़ खाने से बचाते हैं। मनष्य के शरीर में रीढ़ की हड्डी की लम्बाई लगभग 24 से 28 इंच तक होती है। इसमें 33 मनके अथवा मुहरे/कशेरुकाएँ (Vertebrae) होती हैं।

मेरुरज्जु की देखभाल रीढ़ की हड्डियाँ करती हैं।

रीढ़ की हड्डी के निम्नलिखित पाँच मुख्य भाग हैं

(i) गर्दन के मनके (Cervical Vertebrae)

(ii) वक्षीय/पीठ के मनके (Thoracic/Dorsal Vertebrae)

(iii) कमर के मनके (Lumbar Vertebrae)

(iv) त्रिक के मनके (Vertebrae of Sacral)

(v) पूँछ हड्डियों के मनके (Vertebrae of Coccyx Bones)

3. छाती/सीने की हड्डियाँ (Breast Bones)-वक्षस्थल ह्यूमस अर्थात् छाती की हड्डी चपटी और संकरी होती है। इसका ऊपरी भाग चौड़ा और निचला भाग पतला होता है। यह गर्दन के मनके से ऊपर और नीचे कोस्टल कार्टीलेज (Costal Cartilage) द्वारा जुड़ती है।

 इसके दोनों ओर 12-12 पसलियों (Ribs) का एक पिंजरा सा होता है जो इन पसलियों और छाती की हड्डी (Sternum) से मिलकर  बना होता है। सभी पसलियाँ लचकीली और छोटी-बड़ी होती हैं।

 ये पसलियाँ पिछली ओर थोरेसिक वर्टीबरा (Thoracic Vertebrae) के साथ जुड़ी होती हैं। पहली सात पसलियाँ छाती की हड्डी के साथ विभिन्न रूपों में जुड़ी होती हैं। इनको सच्ची या वर्टीब्रो-स्टर्नल पसलियाँ (True/Vertebro-sternal Ribs) कहते हैं।

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आठवीं, नौवीं और दसवीं पसलियाँ छाती की स्टर्नम हड्डी के साथ अप्रत्यक्ष तौर पर जुड़ी होती हैं। इनको झूठी या वर्टीब्रो-कोंड्रल पसलियाँ (False/ Vertebro-chondral Ribs) कहते हैं। अंतिम दो पसलियाँ स्वतंत्र होती हैं। इनको तैरती हुई पसलियाँ (Floating Ribs) कहते हैं।

ये सभी पसलियाँ मिलकर एक पिंजरे का निर्माण करती हैं। पसलियों के मध्य भाग में माँसपेशियाँ होती हैं जो श्वास लेने से फैलती मानव कंकाल संस्थान सिकुड़ती हैं, जिनके कारण यह पिंजरा ऊपर-नीचे होता रहता है। पसली के पिछले भाग में सिर, गर्दन और मनके होते हैं और अगला सिरा कोस्टल कार्टीलेजिज़ (Costal Cartilages) के साथ जुड़ा होता है।

4. बाजू की हड्डियाँ (Bones of Arm)-हमारी प्रत्येक बाजू में निम्नलिखित हड्डियाँ होती हैं

(i) कंधे की हड्डी (Scapula)-कंधे की हड्डी अर्थात् स्कैपुला (Scapula) त्रिकोणी चपटी होती है। इसके दो तल, तीन कोण तथा तीन किनारे होते हैं। यह पीठ के ऊपरी भाग में होती है। यह दूसरी पसली से सातवीं पसली तक होती है।

(ii) मांसल की हड्डी (Humerus)-मांसल की हड्डी दूसरी हड्डियों से मिलकर जोड़ बनाती है। मांसल के बीच वाले भाग को दण्ड (Shaft) कहते हैं।

(iii) छोटी बड़ी वीणा की हड्डियाँ (Radius and Ulna Bones)-छोटी वीणा की हड्डी (Radius) अलना (UIna) से छोटी होती है। यह गर्दन के नीचे होती है। इसका नीचे वाला सिरा कलाई की हड्डी से जुड़ा होता है। बड़ी वीणा की हड्डी (UIna) के तीन भाग होते हैं। यह ऊपर की तरफ मांसल की हड्डी से कोहनी के पिवट जोड़ के द्वारा जुड़ती है।

(iv) हाथ की हड्डियाँ (Hand Bones)-प्रत्येक हाथ में तीन भाग होते हैं-(i) कलाई (Wrist), (ii) हथेली (Palms) (iii) उंगलियाँ (Fingers) कलाई में छोटी-छोटी 8 हड़ियाँ होती हैं। इनकी संख्या अनियमित श्रेणी की हड़ियों में आती है। हथेला में छोटी-लंबी 5 हड्डियाँ होती हैं। ये एक ओर कलाई की हड्डियों के साथ जुड़कर मेटाकार्पल जोड़ बनाती हैं और दूसरी ओर उंगलियो की हड्डियों के साथ जुड़ी होती हैं उंगलियों के कंकाल में छोटी-छोटी दण्डनुमा अंगुलास्थियाँ (Phalanges) होती हैं जो अंगूठे 2 उंगलियों में 3-3 होती हैं।

5. टाँग की हड्डियाँ (Bones of Leg)-हमारी प्रत्येक टाँग में निम्नलिखित हड्डियाँ होती हैं

(i) जाँघ की हड्डी (Thigh Bone)-जाँघ की हड़ी को फीमर (Femur) कहते हैं। यह शरीर की सबसे लंबी और शक्तिशाला। हड्डी होती है। इसका ऊपरी भाग गेंद की तरह गोल होता है।

(ii) घुटने की हड्डी (Kneecap Bone)-घुटने की हड्डी को पैटेला (Patella) कहते हैं। इसका निचला भाग नुकोला है। उसकी ऊपरी सतह खुरदरी एवं अंदर की सतह चिकनी होती है। यह फीमर के निचले सिरे पर जुड़ती है।

(iii) जंघा की हड्डी (Crus Bone)-प्रत्येक टाँग की जंघा में दो हड्डियाँ होती हैं-टिबिया (Tibia) और फिबुला (Fibula) बिया शरीर में लंबाई शक्ति में फीमर के बाद दूसरे स्थान पर है। इसकी शक्ल कुछ चपटी होती है। फिबुला आकार में टिबिया तली होती है। यह शरीर का पूरा भार झेलती है। टिबिया और फिबुला हड्डियाँ मिलकर टखने के जोड़ का निर्माण करती हैं।

(iv) पैरों की हड्डियाँ (Bones of Feet)-प्रत्येक पैर के तीन भाग होते हैं-टखना (Ankle), तलुवा (Sole) पैरों की गलियाँ (Toes) टखने की हड्डी को टार्सल (Tarsal) कहते हैं जिसमें 7 टार्सल हड्डियाँ होती हैं तलुवे में 5 मेटाटार्सल (Metatarsal) उड़ियाँ होती हैं। पैरों की उंगलियों को फैलंजिज़ (Phalanges) कहते हैं। पैरों की उंगलियों में 14 हड्डियाँ होती हैं। 2 अंगूठे में और 3-3 हड्डियाँ उंगलियों में होती हैं।

(Meaning of Respiratory System)-

ऑक्सीजन हमारे शरीर के लिए बहुत आवश्यक होती है। इसके बिना हमारा जीवन संभव नहीं है। जब हम साँस लेते हैं तो ऑक्सीजन हमारे शरीर में प्रवेश करती है और जब साँस छोड़ते हैं तो दूषित वायु अर्थात् कार्बन-डाइऑक्साइड शरीर से बाहर निकलती है। साँस लेने की क्रिया को हम श्वास अंदर खीचने की क्रिया (Inspiration) और साँस बाहर छोड़ने की क्रिया को श्वास छोड़ने की क्रिया (Expiration) कहते हैं।

अतः साँस अंदर लेने और बाहर छोड़ने की क्रिया को श्वसन क्रिया कहते हैं। इस क्रिया में सहायक अंगों के समूह को श्वास प्रणाली कहते हैं इस संस्थान के द्वारा हमारे शरीर में गैसों का आदान-प्रदान होता है।)

श्वास संस्थान के अंग (Organs of Respiratory System)-श्वास संस्थान में विभिन्न अंग अपना महत्त्वपूर्ण कार्य करते . हैं।

1. नाक (Nose)

2. स्वर यंत्र/कण्ठ (Larynx)

3. ग्रसनिका (Pharynx)

4. श्वासनली (Trachea)

5. वायु-नलियाँ/श्वसनियाँ (Bronchi)

6. फेफड़े (Lungs)

7. डायाफ्राम या पेट पर्दा (Diaphragm)

1. नाक (Nose)-नाक श्वास संस्थान का महत्त्वपूर्ण अंग है। यह खोपड़ी में एक तरह की सुरंग है जिससे श्वास प्रक्रिया संभव होती है। वायुकोष जब हम साँस लेते हैं तो ऑक्सीजन हमारे शरीर में प्रवेश होती है। इसमें अनेक धूल-कण, मिट्टी और अनेक प्रकार के कीटाणु भी होते हैं। जब वायु नाक के माध्यम से शरीर में प्रवेश करती है तो नाक की सुरंग के अंदर मानव श्वास संस्थान वाले बाल इन अनावश्यक पदार्थों को बाहर ही रोक लेते हैं,

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अंदर नहीं जाने देते। साफ वायु को ही शरीर के अंदर भेजते हैं। नाक शरीर में प्रवेश करने वाली वायु को शरीर के ताप के बराबर करने में भी सहायक होती है।

2. स्वर-यंत्र/कण्ठ (Larynx)-नाक से ली गई वायु कण्ठ से होती हुई इसी में आती है। इसके सिरे पर एक ढक्कन-सा होता है जिसे स्वर यंत्रच्छद कहते हैं। यह ढक्कन हर समय खुला रहता है किन्तु खाना खाते समय यह ढक्कन बंद हो जाता है ताकि भोजन स्वरयंत्र में गिरे। स्वर-यंत्र में जब वायु प्रविष्ट होती है तब स्वर उत्पन्न होता है। इस प्रकार यह हमें बोलने में भी सहायता प्रदान करता है।

3. ग्रसनिका (Pharynx)यह पेशियों की एक नली होती है जो नाक के पार्श्व भाग में स्थित होती है। यह खोपड़ी के नीचे की ओर होती है। इस प्रकार यह स्वर-यंत्र और मुँह के पीछे की ओर होती है। इसका पिछला भाग कण्ठ ग्रसनी कहलाता है।

4. श्वासनली (Trachea)-श्वासनली स्वर-यंत्र से प्रारंभ होकर छाती के अंदर नीचे की ओर जाती है। यह बीच से खोखली एक नली होती है। यह उप-अस्थियों के अधूरे छल्लों के साथ मिलकर बनती है। ये छल्ले पिछली तरफ जुड़े नहीं होते, क्योंकि श्वासनली का पिछला भाग चपटा होता है। इसमें वायु को छानने के लिए छोटे-छोटे बाल होते हैं। आगे जाकर यह नली दो शाखाओ में बँट जाती है। .

5. वायु-नलियाँ/श्वसनियाँ (Bronchi)-वक्ष भाग में पहुँचते ही श्वासनली दो शाखाओं में बँट जाती है जिन्हें श्वसनियों या वायु-नलियाँ कहते हैं दाईं वायु-नली बाईं वायु-नली से कुछ छोटी किन्तु अधिक चौड़ी होती है। दोनों वायु-नलियाँ अपनीअपनी ओर के फेफड़ों में घुस जाती हैं। इनके माध्यम से वायु से ऑक्सीजन (O2) रक्त में तथा रक्त से कार्बन-डाइऑक्साइड (Co2) वायु में चलती रहती है। इस प्रकार फेफड़ों में उपस्थित वायु-नलिकाएँ साँस की वायु को वायु-कोष्ठकों में लाने एवं वापस ले जाने का कार्य करती हैं। .

6. फेफड़े (Lungs)-हमारे शरीर में एक जोड़ी उलझे हुए स्पंज की भाँति ठोस फेफड़े होते हैं-दायाँ फेफड़ा और बायाँ फेफड़ा। दोनों फेफड़ों का भार भिन्न होता है। ये चिकने एवं कोमल होते हैं। इनके भीतर अत्यंत सूक्ष्म अनंत कोष्ठ होते हैं जिनको वायु-कोष्ठ (Air Cells) कहते हैं। इन वायु-कोष्ठों में वायु भरी होती है अर्थात् ये वायु को जमा करते और सिकुड़ने पर वायु को बाहर निकालते हैं

फेफड़ों के चारों ओर एक प्लीऊरा नामक दोहरी झिल्ली चढ़ी होती है जिनके मध्य में एक तरल पदार्थ होता है। यह तरल पदार्थ रगड़ चोट से फेफड़ों की रक्षा करता है। फेफड़ों का मुख्य कार्य शरीर के अंदर वायु खींचकर ऑक्सीजन उपलब्ध कराना तथा कोशिकाओं की गतिविधियों से उत्पन्न होने वाली कार्बन-डाइऑक्साइड गैस को शरीर से बाहर फेंकना है। फेफड़ों में किसी प्रकार की खराबी होने से श्वसन प्रक्रिया बाधित हो जाती है।

7. डायाफ्राम या पेट पर्दा (Diaphragm)-डायाफ्राम वह अंग है, जो श्वास को अन्दर ले जाने में सहायता करता है। इसका आकार गुबन्द की तरह होता है। यह छाती को पेट से अलग करता है और जिगर को नीचे दबाता है। जब हम श्वास लेते हैं तो पेट पर्दा या डायाफ्राम बढ़ जाता है तथा जब हम श्वास छोड़ते हैं तो यह अपनी पहले वाली अवस्था में जाता है।

 

 

 

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