Peach Ki Kheti

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Peach Ki Kheti

 किस्में (Varieties) 

शर्बती (Sharbati): 

Peach
Peach ki kheti



यह सबसे बढ़िया किस्म है। इसका फल जून के पहले से तीसरे सप्ताह में पकता है। फल का औसत वजन 45 ग्राम होता है। छिलका नरम और फल रसदार होता है। मिठास 16-17 प्रतिशत होती है। 

सफेदा (Safeda): 

फल जून के तीसरे सप्ताह में पकता है। औसत वजन 38 ग्राम और मिठास 15-16 प्रतिशत । इसका रखरखाव बहुत बढ़िया है। 

मैचलैस (Matchless): 

यह किस्म भी जून के तीसरे सप्ताह में पकती है। फल का औसत वजन 40 ग्राम और कुल घुलनशील तत्व (मिठास) 17 प्रतिशत । 

फ्लोरिडा सन (Floridasun): 

यह सबसे पहले पकने वाली किस्म है जो अप्रैल में तैयार हो जाती है। फल का औसत वजन 40 ग्राम और कुल घुलनशील तत्व (मिठास) 9-10 प्रतिशत होती है। 

शान-ए-पंजाब 16-33 (Shan-e-Punjab 16-33): 

यह मई में पकने वाली किस्म है जिसमें कुल घुलनशील तत्व (मिठास) 12-13 प्रतिशत होती है। फल का आकार भी अच्छा होता है।

Amla ki kheti

सन रेड (Sun Red): 

यह बिना रेशे की किस्म है। फल 20 मई तक पकता है। फल का वजन 30 ग्राम है और कुल घुलनशील तत्व (मिहारा) 12 प्रतिशत है। 

प्रभात (Prabhat): 

यह किस्म पहले पकने वाली है जो अप्रैल के अन्त में पक कर तैयार हो जाती है। फल का औसत वजन 45 ग्राम और कुल घुलनशील तत्व (मिठास) 13 प्रतिशत होती है। 

 पौधों के लगाने का समय (Time of planting) 

पौधों को बिना मिट्टी के दिसम्बर के अन्त में लगाया जाता है  जबकि जुलाई-अगस्त में मिट्टी की गाची के साथ लगाना चाहिए। सर्दी में पौधों को लगाने में प्राथमिकता देनी चाहिए । सभी आडू के पौधों को नवम्बर से दिसम्बर तक कलम द्वारा तैयार किया जाता है। 

एक वर्ष की पुरानी टहनियों को लेकर उसके तल पर लकड़ी का टुकड़ा साथ अवश्य रखना चाहिए। इन कलमों को 1000 पी. पी. एम. आई. बी. ए. (50 प्रतिशत अलकोहल में) के घोल में भिगोकर ऊँची उठी हुई क्यारियों पर लगाना चाहिए। 

इन कलमों में 50-80% तक जड़ें निकल आती हैं। बिना दवाई लगाई हुई कलमें केवल 30 प्रतिशत तक जड़ें देती हैं। जहां पर अधिक अंधेरा हो और पानी खड़ा रहता हो व आडू के पौधे गिर जाते हैं। इन स्थानों पर आलूबुखारा को मूल तने की तरह प्रयोग करना चाहिए। 

कांट-छांट और ट्रेनिंग (Pruning and training) 

आडू में खाली शीर्ष विधि ही सबसे अच्छी विधि है। इसमें चार टहनियां सभी दिशाओं में रखी जाती हैं और बीच वाला शीर्ष (हेड) काट दिया जाता है। हर वर्ष कटाई के समय सभी टहनियों को एक-तिहाई काट दिया जाता है। ऊपर की टहनियों को इतना काट दिया जाता है कि केवल 15 सैं.मी. भाग बच जाए। काट-छांट दिसम्बर माह में पत्ते झड़ने पर करनी चाहिए।

Ber ki kheti

गोबर की खाद, फास्फोरस और पोटाश दिसम्बर या जनवरी में डालें। आधी नाइट्रोजन फरवरी (फूल आने से पहले) और आधी नाइट्रोजन एक महीना बाद डालें। 

सिंचाई (Irrigation) 

सिंचाई गर्मियों में एक सप्ताह के अन्तराल पर तथा सर्दियों में 10-15 दिन के अन्तर पर करें। सिंचाई अक्तूबर के अन्त में बंद कर दें और फिर दिसम्बर के पश्चात् कटाई के बाद आरम्भ करें। 

फलों को कम करना (Fruit thinning) 

आड़ में काफी फल आता है जिससे फल का आकार छोटा हो जाता है। बड़े आकार के फल लेने के लिए फलों को कम किया जाता है। फल से फल का फासला 10-15 सें.मी. होना चाहिए। 

Peach
Peach 



फल तोड़ना (Fruit harvesting) 

आडू का फल जल्दी खराब होने वाला है। इसको तभी तोड़ना चाहिए जब पूरे आकार का बन जाए। फ्लोरिडा सन तभी तोड़ना चाहिए जब फल में 50 प्रतिशत रंग आ जाए। फलों को कैंची से काटना चाहिए। फल के साथ छोटी डण्ठल भी रखनी चाहिए। 

How to Cultivate Mango for Effective (Mango Krishi)

फलों को 1000 पी.पी.एम. लाल दवाई से उपचारित कागज गत्ते के डिब्बे में लगाने से फलों को रखने की क्षमता बढ़ाई जा सकती है।

कीट व हानि के लक्षण (Symptoms of insect infestation) 

1. आडू का पत्ती लपेट अल (Peach leaf roller, Brachycaudus helichrysi): 

यह आडू का विनाशकारी कीट है तथा नाशपाती, अलुचा और बादाम पर भी पाया जाता है। इसके गहरे-भूरे रंग के शिशु और पीले रंग के प्रौढ़ विकसित हो रहे प्ररोहों एवं मुलायम पत्तियों से रस चूसते हैं। 

क्षतिग्रस्त टहनियों की पत्तियां मुड जाती हैं। फल छोटे रहकर पकने से पूर्व ही गिर जाते हैं। नवम्बर से पंखदार मादा पुष्पकली के आधार पर अंडे देती हैं और इस अवस्था में यह कीट शीतनिष्क्रिय रहता है। 

बसंत (फरवरी-मार्च) में यह पुष्पकलियों को क्षतिग्रस्त करता है और बाद में मुलायम पत्तियों पर चला जाता है। अप्रैल-मई तक इसकी तीन पीढियां हो जाती हैं। 

इस कीट के अतिरिक्त अल की एक और जाति माइजस परसिकी अप्रल से जून तक कलियों, पत्तों और नवजात फला से रस चूसकर आडू को नुकसान पहुंचाती है। 

2. आडू की फल मक्खी (Pear fruitfly, Bactrocera zonatus & Bactrocera spp.): 

आडू के साथ-साथ यह मक्खी नाशपाती, अमरूद, आम व नींबू पर भी आक्रमण करती है एवं घरेलू मक्खी के बराबर होती है। इसके प्रौढ़ पीले-भूरे रंग के होते हैं जिनके पंख पारदर्शी होते हैं। 

Peach fruits
Peach fruits



ये पक रहे फलों के गूदे के अन्दर अण्डे देती हैं तथा क्षतिग्रस्त फलों को दबाने पर उनमें से अण्डे दिए जाने वाले छेदों से भूरे रंग का तरल पदार्थ निकलता है। 

इसकी मैली-सफेद और बगैर पैर वाली सूण्डियां 5 से 15 दिन तक फल के अन्दर रह कर गूदा खाती हैं तथा ग्रसित फल बेडौल और छोटे रहकर सड़ने लगते हैं और अन्त में गिर जाते हैं। सूण्डियां फलों से निकल कर जमीन के अन्दर प्यूपा बनाती हैं और इस अवस्था में ही वह शीतनिष्क्रिय रहती हैं। 

यह मक्खी मई से अगस्त तक (फसल पूरी होने तक) सक्रिय रहती है जिसमें इसकी कई पीढ़ियां होती हैं। प्रौढ़ मक्खी कई दिनों तक जीवित रहती है तथा इसके उड़ने की क्षमता भी अधिक होती है। 

3. चपटे मुंह वाला छेदक (Sphenoptera lafertei): 

यह आडू, अलूचा एवं नाशपाती का छिटपुट कीट है। इसके प्रौढ़ लम्बे, मजबूत, गहरे पूरे तथा चमकीले होते हैं। सूण्डियां चपटे मुंह वाली (कोबरा नाग के समान) हल्के सफेद रंग की होती हैं। 

प्रौढ़ की अपेक्षा सूंण्डियां ज्यादा नुकसान करती हैं। ये तने और टहनियों की छाल के अन्दर टेढ़ी मेढी सुरंग बनाकर उसे खाली हैं परिणामस्वरूप छाल ढीली पड़ जाती है एवं पौध-रस का प्रवाह रुक जाता है। 

ग्रसित शाखाओं की बढ़वार रुक जाती है। पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और फल कम लगते हैं और अन्ततः ये टहनियां मर जाती हैं। प्रौढ़ कीट कोमल पत्तियों को खाते हैं। नये और पुराने दोनों तरह के वक्षों पर इस कीट का आक्रमण होता है। 

कमजोर और अस्वस्थ वृक्षों पर तथा उन बागों में, जहां पानी की निकासी ठीक न हो, इसका प्रकोप ज्यादा होता है। मार्च से अक्तूबर तक यह कीट अधिक सक्रिय रहता है जिसमें इसकी 2-3 पीढ़ियां होती हैं। एक और पीढ़ी नवम्बर से मार्च तक होती है। 

4. छाल खाने वाली सूण्डी (Bark eating caterpillar, Indarbela spp.): 

यह कीट प्रायः सभी फलदार, छायादार व अन्य पेड़ों को नुकसान पहुंचाता है। यह कीट प्रायः दिखाई नहीं देता परन्तु जहां पर टहनियां अलग होती हैं 

वहा पर इसका मल व लकड़ी का बुरादा जाले के रूप में दिखाई देते हैं। दिन के समय यह कीट की सूंडी तने के अन्दर सुरंग बनाती हैं और रात को छेद से बाहर निकलकर जाले के नीचे रहकर छाल को खाती हैं एवं खुराक नली को खाकर नष्ट कर देती हैं 

जिससे पौधों के दूसरे भागों में पोषक तत्व नहीं पहुंच पाते हैं। बहुत तेज हवा चलने पर, प्रकोपित टहनियां एवं तने टूट कर गिर जाते हैं। जिन बागों की देखभाल नहीं होती उनमें पुराने वृक्षों पर इसका आक्रमण अधिक होता है। एक वर्ष में इस कीट की एक ही पीढ़ी होती है जो जून-जुलाई से शुरू होती है।

5. दीमक (Termite, Microtermes obesi Oilonie-termes tohs/us): 

यह कीट लदार, छाया वाले व अन्य पक्षों को भारी नुकसान पहुंचाता है। इसका ज्यादा नुकसान पोर में या नये लगाए हा। पौधों में (जो नई व रेतीली जगी। में रोपे जाते हैं) होता है। शुष्क व अर्धशुष्क जलवायु इसके लिए लाभकारी होती है। ये कीट सूर्य की रोशनी पसन्द नहीं करते। 

ये या तो जमीन में रहकर वृक्षों की जड़ों को खाकर तने को खोखला करते हुए ऊपर की ओर बढ़ते हैं अथवा पेड़ों की बाहरी सतह पर मिट्टी की सुरंग बनाकर इसके अन्दर रहकर छाल को खाते हैं। 

इसके कमेरों द्वारा जड़ों, छाल या बीच की लकड़ी की क्षति होने से वृक्ष सूखकर मर जाते हैं। दीमक से प्रकोपित वृक्ष तेज आंधी से गिर जाते हैं। 

जीवित पौधों के साथ-साथ यह सूखी लकड़ी को भी नुकसान पहुंचाते हैं। सारा साल इनका प्रकोप बना रहता है लेकिन सर्दी व बरसात के समय यह प्रकोप कम हो जाता है।

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